इस बात में कोई संशय नहीं कि महारथी कर्ण एक महान योद्धा थे और एक बार उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान भीमसेन को एक बार हराया भी था. परन्तु महाभारत युद्ध के दौरान एक ऐसा भी पल आया था , जब महारथी कर्ण में मन में भीमसेन का पराक्रम देख कर भय समा गया था . महाभारत महाग्रंथ के कर्ण पर्व के चतुरशीतितमोध्याय अर्थात अध्याय संख्या 84 के श्लोक संख्या 1 से श्लोक संख्या 14 में इस घटना का विस्तार से वर्णन आता है .
ये अध्याय भीमसेन द्वारा दु:शासन के वध के बाद घटी घटनाओं का वर्णन करता . भीम सेन ने दु:शासन के वध के दौरान बहुत हीं रौद्र रूप धारण कर लिया था . भीम सेन ने दु:शासन का सीना फाड़कर उसका लहू भी पी लिया था.
इस अध्याय में भीमसेन द्वारा दुर्योधन के अन्य 10 भाइयों का वध और तदुरोपरांत भीमसेन का ये रौद्र रूप देखकर कर्ण के मन में भय के समा जाने का जिक्र आता है . खासकर कर्ण की इस भयातुर दशा का स्पष्ट रूप से वर्णन श्लोक संख्या 7 और 8 आता है . इसके बाद के श्लोकों में शल्य द्वारा कर्ण को समझाने की बात का वर्णन किया गया है .
“स॒ बार्यमाणो विशिखेः समन्तात् तैमेहारथें: ॥ भीमः क्रोघाप्मिरक्ताक्षः कुछः काल इवावभौ ।4॥“
उन महारथियों के चलाये हुए बा्णो द्यारा चारों ओर से रोके जाने पर भीमसेनकी आँखें क्रोध से लाल हो गयीं और वे कुपित हुए. कालके समान प्रतीत होने लगे.
तांस्तु भल्लैमंदावेगैदशभिदंश भारतान्॥ डुक््माडदान् रुक््मपुझैः पाथों निस्ये यमक्षयम्।5॥
कुन्तीकुमार भीमने सोनेके पंखबाले महान् वेगशाली दस भल्लों द्वारा खुवर्णमय आन्ग्दों से विभूषित उन दर्सों मरत-बंशी राजकुमारों को यमछोक पहुँचा दिया.
इतेषु तेषु बीरेषु प्रदुद्राव बल तव॥ पश्यतः खूतपुश्रस्य पाण्डवस्य भयार्दितम्।6 ॥
उन वीरोंके मारे जानेपर पाण्डु पुत्र भीम सेनके भय से पीड़ित हो आपकी सारी सेना सूत पुत्रके देखते-देखते माग चली.
संजय उस पुरे युद्ध का वृतांत धृतराष्ट्र को सुना रहे थे . श्लोक 4 से श्लोक 6 तक भीम सेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुर्तों का वध का वर्णन है . इसके बाद कैसे कर्ण के मन में भय समा जाता है , इसका वृतांत आता है .
ततः कर्णों मद्दाराज प्रविवेश महव् भयम् ॥ इष्ठा भीमस्य विक्रान्तमन्तकस्य प्रजाखिव ।7 ॥
महाराज ! जैसे प्रजा बर्ग पर यमराज का बल काम करता है, उसी प्रकार मीमसेन का वह पराक्रम देखकर कर्ण के मन में महान् भय समा गया.
तस्य त्वाकारभावज्ञ: शल्य समिति शोभनः ॥ उवाच वचन कर्ण प्राप्तकालम रिदमम ।8 ॥
युद्धमें शोमा पानेवाले शल्य कर्ण की आकृति देखकर ही उसके मनका भाव समझ गये; अतः शत्रु दमन कर्ण से यह समयोचित बचन बोले.
मा व्यथां कुरु राधेय नेथं त्वय्युपपद्यते ॥ एते द्ववन्ति राजानो भीमसेनभयार्दिताः ।9॥
दुर्योधनश्च सम्मूढो भ्रातृव्यलनकरशितः ॥ 10 ॥
“राधानन्दन | तुम खेद न करो) तुम्हें यह शोमा नहीं देता है । ये राजा लोग भीमसेन के भय से पीड़ित हो भागे जा रहे हैं। अपने भाइयों की मृत्युसे दुःखित हो राजा दुर्योधन भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है ॥ 9-10 ॥
इस प्रकार भीम का पराक्रम देखकर कर्ण के मन में महान भय समा जाने पर शल्य उसे नाना प्रकार से प्रोत्साहित करने लगते हैं . शब्द महान भय का इस्तेमाल किया गया है इस श्लोक में . इस श्लोक का इस्तेमाल ये स्पष्ट रूप से जाहिर करता है कि कर्ण निश्चित रूप से भीम का पराक्रम देखकर भयातुर हो गए होंगे .
हालाँकि शल्य के समझाने और प्रोत्साहित करने के बाद उनके मन से भय का भाव मिट गया और वो फिर से युद्ध के मैदान में डट गए थे . परन्तु आश्चर्य की बात तो ये है कि कर्ण जैसा महारथी भी भीम के पराक्रम से भयग्रस्त हो गए थे .
तो ये थी वो घटना , जहाँ पे इस बात का जिक्र आता है कि कैसे महाभारत युद्ध के दौरान महारथी कर्ण भीम का पराक्रम देखकर डर गए थे . एक जिक करने वाली बात ये है कि महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण का पराक्रम देखकर युद्धिष्ठिर भी भयाग्रस्त हो गए थे और एक बार अर्जुन भी विचलित हो गए थे . परन्तु अर्जुन का कर्ण से डरने या भीम सेन का कर्ण से डरने का जिक्र नहीं आता है .
अजय अमिताभ सुमन : सर्वाधिकार सुरक्षित
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