बात ताजी ताज़ी है और समय भी बहुत खाली है, तो समय के सदुपयोग के लिए आज बहुत अरसे बाद फिर से अपने मन मस्तिष्क में उठे द्वंद्वों को लिखना शुरू किया हूँ। किसी दोस्त ने अभी हाल ही में मुझसे कहा था की मिथिलेश हाथी दूसरे के भरोसे नहीं पाल सकते। आज कहीं न कहीं वह वक्तव्य मुझे झकझोर रहा है। जीवन में कमोबेश सब कुछ ठीक ही चल रहा था की अचानक से कोरोना ने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी।
यूँ तो मैं हमेशा से कोरोना को लेकर काफी सचेत रहा हूँ, मुझे मालुम था की कोरोना कभी मेरे जरिये मुझ तक नहीं पहुंच सकता। पर डर हमेशा से बना रहता था की साथ रहने वाले लोग ही कोरोना को मुझ तक पहुचाएंगें। हुआ भी ऐसा ही.. और रूम पार्टनर कोरोना पॉजिटिव हो गया। उसे रूम पार्टनर भी नहीं कहेंगें दरअसल उसने कभी रांची में मुझे कुछ दिनों के लिए शरण दिया था तो पिछले एक महीने से उसको मैंने शरण दे रखा था। अब उसके कोरोना पॉजिटिव होने के बाद एक पल तो उसके घर वालों ने कहा की वापस घर आ जाओ फिर दूसरे ही पल उसे मना कर दिया गया और कहा गया की जहाँ हो वहीँ रहो।
मुझे मालुम था की कोरोना पीड़ित को अपने घर में रहने दूंगा तो कहीं न कहीं मुझे भी कोरोना पॉजिटिव होने की संभावना हो सकती है। मन तो किया की उसे बोल दूँ की बाबू रे घर चले जाओ, एक तो मैं ऐसे ही पैसों की किल्लत से जूझ रहा हूँ अब कोरोना से नहीं जूझ सकता। पर अपने पापा का दिल और संस्कार आज भी मेरे अंदर जिन्दा था और मेरे ऊपर लाख मुशीबत होने के बाद भी मैं उसे मना नहीं कर सका।
पिछले साल कोरोना से जुडी कई हृदय विदारक घटना मैंने सुनी थी। लोग कोरोना के डर से अपनों से दूरियां बनाने लगे थे। आज वैसी घटना मेरे सामने घट रही थी। खैर जो भी हो अब वो मेरे साथ है और मेरे घर को भी कन्टेनमेंट जोन बना दिया गया है। लड़का ठीक है मेरे से दूरियां बना कर रह रहा है और जरुरी दवाइयां, विटामिन सी की गोलियां, ऑक्सीमीटर, फल और ड्राई फ्रूट्स अपने रांची के दोस्तों से पैसे देकर मंगवा लिया है। खाना मैं बना कर दे दे रहा हूँ, उसके कुछ रिश्तेदार भी हैं रांची में, वे भी समय-समय उसके लिए खाना वैगेरा मेरे घर के दरवाजे पर छोड़ जा रहें हैं।
अब यहाँ से बात शुरू हो रही है मेरी, मेरे पास या मेरे घर में इतना पैसा नहीं है की जो मैं आज रांची में हूँ और जो कर रहा हूँ, वो कर सकता हूँ। किसी रहनुमां या मेरे लिए तो वो भगवान् ही हैं, जिन्होंने मुझे रांची तक लाया और यहाँ खड़ा किया। पर पिछले कुछ महीनों से मेरी कुछ गलतियों के कारण वो मुझसे नाराज थे। इस कारण ये जो हाथी (व्यवसाय) मैंने रांची में खड़ा किया है उसका खुराख (खर्च) मिलना बंद हो गया। अब ऐसे में बीते महीने हाथी को बंद करने की नौबत आ गयी थी। तब मैंने अपने घर से, अपने सुभचिन्तक दोस्तों से, रिश्तेदारों से और साथ में अपनी अब तक के बचत किये हुए पैसे से काफी मशक्कत कर एक दो महीने के लिए हाथी के खुराक का जुगाड़ किया। मुझे उम्मीद था की जैसे ही मैं अपनी गलतियों को सुधारूंगा, मेरे भगवान् की नाराजगी भी मेरे से दूर होगी और वापस से सब कुछ ठीक होगा।
हुआ भी ऐसा ही.. सारी नाराजगी शायद दूर हुई और मिलने का समय तय हुआ। लेकिन इस बीच शायद कोरोना ने दोनों जगह दस्तक दे दी है। अब वापस से मेरे और मेरे भगवान् के बीच दूरियां बन गयीं हैं। पैसों की तंगी तो थी ही पर जो उम्मीद थी की अब हाथी के खुराख मिलेंगें वो भी कुछ दिन के लिए रुक गयी है। जो बचे खुचे पैसे थे मेरे पास वो भी ख़त्म होने को है और अब वापस से पैसों की तंगी भी मेरे पास शुरू हो गयी है। अब तो मेरे पास सिर्फ चंद रुपये हैं, और इसमें ऑक्सीमीटर तो दूर विटामिन सी की गोलियां भी नहीं ला सकता। कोरोना का असर भी मुझ पर दिखने लगा है। भगवान् ने तो संपर्क वापस से बंद कर लिया है अब उनके ठीक होने तक पैसे आने की उम्मीद भी नहीं है। घर, दोस्त और रिश्तेदारों से पहले ही मदद ले चूका हूँ, सो अब उनसे भी मदद की उम्मीद नहीं है।
जिसको मैंने शरण दी है उसी से मुझे कोरोना भी शायद हो गया है, पर कैसे बोल दूँ की मेरे लिए भी दवाइयां और ऑक्सीमीटर मंगवा दो। अब बस पिछले दिनों अपने घर गया था तो माँ ने घर के बागान में फले 20 निम्बू दे दिया था। अब वो ही मेरी दवा है और सुबह शाम बचा-बचा कर सेवन कर रहा हूँ।
इतना सब कुछ लिखते लिखते अब सिने में थोड़ा दर्द का भी एहसास होने लगा है। सो अब और ज्यादा नहीं लिखूंगा.. पर अब अपने दोस्त का वो वक्तय्व कहीं न कहीं सही लगने लगा है "हाथी, दूसरे के भरोसे नहीं पाल सकते" .... लेकिन एक लोकोक्ति भी है ना "नेकी कर दरिया में डाल" .... अब वही उम्मीद है बाबा भोले नाथ से.. वो सब देख रहे हैं.... कोरोना से मैं भी बचूंगा और मेरा हांथी भी...
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