ravi-goswami1577527512 Ravi Ranjan Goswami

बहुत समय से भारत के, जानवरों से भरे एक जंगल में, जानवरों की सभा नहीं हुई थी। बुजुर्ग जानवर चिंतित थे कि नयी पीढ़ियाँ अपने गौरवशाली इतिहास को भूलती जा रहीं थी। उन्होने एक सभा करने का निर्णय लिया।


Histoire courte Tout public.

#जंगल #जानवर #पक्षी #सभा #inkspiredstory
Histoire courte
1
3.6mille VUES
Terminé
temps de lecture
AA Partager

जंगल में सभा


बहुत समय से भारत के, जानवरों से भरे एक जंगल में, जानवरों की सभा नहीं हुई थी। बुजुर्ग जानवर चिंतित थे कि नयी पीढ़ियाँ अपने गौरवशाली इतिहास को भूलती जा रहीं थी। उन्होने एक सभा करने का निर्णय लिया। सभा में उन्होने लोक कथाओं और ऐतिहासिक कहानियों के माध्यम से नयी पीढ़ी के जानवरों को अपने पूर्वज और इतिहास की जानकारी देने का निर्णय किया और आने वाली पूर्णिमा की रात को सभा करने का निर्णय किया।

जंगल के राजा शेर ने सारे जंगल में सभा का प्रचार करवाया और निवेदन किया सभी जानवर सपरिवार इसमें भाग लें । सभा का स्थान जंगल के सबसे बूढ़े बरगद के पास के मैदान में रखा गया। सभा में शेर चीता हाथी जैसे बड़े जानवरों से लेकर गिलहरी जैसे छोटे जन्तु भी उपस्थित थे । एक एक करके बुजुर्ग जानवर अपने पूर्वजों के जाने अंजाने किस्से सुना रहे थे । सब`बड़ी रुचि से सुन रहे थे। अधिकांश किस्सों में जानवर और मनुष्य के आपसी मधुर रिश्तों और सहयोग की बातें शामिल थीं। सबको अपने पूर्वजों के शानदार कृतित्व और इतिहास पर गौरव था साथ भारतवर्ष की सभ्यता और संस्कृति पर गर्व था।

सर्व प्रथम नागों के प्रमुख ने कहा, “मैं तो ये सोच कर धन्य हो जाता हूँ कि महादेव शिव ने कितने प्यार और सहजता से सर्पों को अपने गले में धारण किया है।

सिंह भी भक्ति भाव में डूब कर बोला हम शेरों को अपने पूर्वजों पर नाज है जिनके सतकर्मों ने उन्हें देवी दुर्गा का वाहन बनने की पात्रता दी।देवी का वाहन होने से हम सभी का कितना मान बढ़ा है।

एक बुजुर्ग गिद्ध ने कहा, “हमारे पूर्वज जटायु का`आत्म`बलिदान अविस्मरणीय है। वह सीता माता को बचाने के लिये राक्षसराज रावण से भी भिड गए थे।

एक ओर बैठे एक बुजुर्ग भालू ने कहा, “हमारे प्रसिद्ध पूर्वज जामवंत , नल और नील के बारे में सभी जानते हैं किस प्रकार उन्होने भगवान श्री राम का साथ दिया था।

एक बूढ़ा बानर बोला, “सीता जी की खोज में और राम रावण युद्ध में श्री हनुमान, सुग्रीव, अंगद जैसे बलशाली वानरों से लेकर छोटे वानरों तक ने कितना कार्य किया सभी जानते है।“

एक बुजुर्ग गाय को विशेष आमंत्रण पर बुलाया गया था। वह गर्व और भावुकता से बोली, “हम तो माँ हैं। हमने कभी अपने और पराए बच्चो में भेद नहीं किया। हर युग में हमें माँ का ही सम्मान मिला। अब भी बाल स्वरूप कृष्ण को याद कर तन मन पुलकित हो जाता है। वह नटखट नटवर माँ यशोदा और गोपिकाओं को छकाता था किन्तु हमारी सेवा करता था।

रात ज्यादा हो गयी थी। बच्चों को नींद आने लगी थी। किस्से और कथाएँ बाकी थीं।

किन्तु समय का ध्यान कर शेर ने उस दिन के कार्यक्रम की समाप्ती की घोषणा कर दी। सब लोग अपने अपने घरों को चले गये।

रात को सभी जानवरों का मन प्रसन्न रहा । सब अच्छी नींद सोये । दूसरे दिन उनके बच्चों के सवाल भी उनके इतिहास, संस्कृति, और पूर्वजों को लेकर थे। सभा की उपयोगिता सभी को समझ आयी थी ।

सभा के समय आसपास के पेड़ों पर अनेक पक्षी थे जिन्होंने सभा की कार्यवाही को देखा। किन्तु जटायु के अतिरिक्त किसी पक्षी की सहभागिता नहीं रही थी। पक्षी भी अपने बच्चों के संस्कारों को लेकर चिंतित थे वे भी अपने गौरव शाली इतिहास और परम्पराओं को भूल रहे थे । अनुशासन की कमी हो रही थी। हर पक्षी का भोजन प्रकृति द्वारा निर्धारित है । किन्तु भक्ष्य अभक्ष्य का खयाल कम हो रहा था। कुछ बच्चे और बड़े भी फल खाते कम थे तोड़ तोड़ कर गिराते ज्यादा थे । कीड़े मकोड़े खाने वाले पक्षी दूसरी चीजों पर लार टपका कर पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्य को नहीं निभा रहे थे ।

बड़े पक्षियों में हिंसा बढ़ गयी थी । हालात मनुष्य समाज जैसे खराब नहीं थे । एक पेड़ पर आज भी अनेक प्रकार के पक्षी बड़ी संख्या में रह लेते थे।

कुछ बुजुर्ग पक्षियों ने जंगल में पक्षियों की सभा करने के

बारे में सोचा और गरुण से बात की ।

कुछ जिम्मेदार पक्षियों ने परामर्श किया और जटायु जी के संरक्षण में गरुण की अध्यक्षता में मोर द्वारा संचालित सभा करने का निर्णय लिया। सभा का स्थान एक चेरी के पेड़ पर रखा गया। ये पेड़ बड़ा भी था जिस पर बड़ी संख्या में पक्षी एक साथ बैठ सकते थे और थोड़ा कम घना था जिससे एक दूसरे को देख भी सकते थे । सभा अगली पूर्णिमा की शाम को रखा गया ।

नियत शाम को सभी अपने घोसलों मैं लौटे और अल्प समय विश्राम कर सभा स्थल चेरी के पेड़ पर उपस्थित हो ।

जटायु ने सभा प्रारम्भ करने की अनुमति दी।

मोर ने सबका आदर पूर्वक सम्मान किया और कहा, “ सर्वप्रथम हम इस सभा का उद्देश्य जान लें ।

उसने कहा, “इस सभा का उद्देश्य अपने गौरव शाली इतिहास का स्मरण करना और उससे से नयी पीढ़ी को परिचित कराना है जिससे उनका और हम सब का आत्म सम्मान बढ़ेगा। बच्चों में कुछ अच्छे संस्कारों की नींव पड़ेगी।“

मोर ने फिर गरुण से दो शब्द बोलने को कहा।

गरुण ने कहा, “ मैं चाहता हूँ तुम ही वार्तालाप प्रारम्भ करो।“

मोर ने सभा में उपस्थित सभी पक्षियों को प्रणाम किया और कहा, “हमारा गौरवशाली इतिहास तो इस तथ्य से ही उजागर हो जाता है कि मोर को शिवजी के पुत्र श्री कार्तिकेयन की सवारी बनाया गया है । श्री कृष्ण भगवान तो हर समय हमारे पंख अपने मुकुट में या बालों में सजाये रहते हैं ।

और वर्तमान में हमें भारत में राष्ट्रीय पक्षी का स्थान प्राप्त है ।

अब गरुण ने कहा, “ बन्धुओं इस से अधिक गौरव की क्या बात हो सकती है कि विष्णु भगवान ने हमें अपना वाहन चुना। एक पुराण का नाम हमारे नाम पर गरुण पुराण रखा गया है। “

मोर ने सभा का संचालन करते हुए गरुण के पश्चात

हंस से बोलने की प्रार्थना की।

हंस ने कहा, “हमारे पूर्वजों ने कितना आदर्श जीवन बिताया होगा कि विद्यादात्री देवी माँ सरस्वती ने हंस को अपना वाहन बनने का गौरव प्रदान किया। “

उल्लू को नए जमाने में कुछ लोग अच्छी नज़र से नहीं देखते अतः उसका आत्मबल कुछ क्षीण हो गया था । उसे लगा कि पता नहीं उसे सभा में बोलने का अवसर देंगे या नहीं । ये सोचकर कर बीच में ही मोर से बोला, “दादा मुझे भी बोलना है ।

मोर ने उसे ही तत्क्षण बोलने के लिये आमंत्रित कर लिया।

वह बोला, “ इतिहास तो हमारे पूर्वजों ने भी स्वर्णिम लिखा तभी तो हमें देवी लक्ष्मी ने अपना वाहन बनाया। किन्तु मनुष्य अजीब प्राणी है। सभी लक्ष्मी देवी को पूजते हैं और चाहते हैं देवी उनके घर आयें किन्तु ये भूल जाते हैं कि आखिर उल्लू ही तो उन्हें अपने ऊपर बैठाकर लाने वाला है। वे हमारा मज़ाक बनाने से नहीं चूकते और मूर्ख व्यक्ति को उल्लू कहते हैं जैसे कि हम मूर्ख हों ।यदि उनसे हमारी मूर्खता का एक भी दृष्टांत पूछा जाये तो वे नहीं बता पाएंगे। खैर मुझे अपनी महान विरासत पर कोई संदेह नहीं।“

कौए को भी उल्लू की तरह संदेह था उसे सभा को संबोधित करने का अवसर मिलेगा या नहीं।ये संशय मनुष्यों के संसर्ग में रहने से पैदा हुआ था । जो कभी उसे पुचकारते थे और कभी दुतकारते थे ।

कौए ने मोर से कहा, “ माननीय मुझे भी बोलने का अवसर दें ।

मोर ने उल्लू के बाद कौए से सभा को संबोधित करने को कहा।

कौआ आदत बस कांव कांव कर पंख फड़ फड़ाया फिर बोला, “सभी को प्रणाम। हमारी गौरव शाली परंपरा भी काफी प्राचीन है । हमारे महान पूर्वज काक भुशुंडि का नाम सभी ने सुना होगा। और हम तो जन सेवक पक्षी हैं । दूसरे पशु पक्षी और मनुष्य के लिये जो अभक्ष्य है उसे खाकर वातावरण साफ रखते है। मनुष्य के पितरों को त्राण देते हैं । स्वार्थी मनुष्य का व्यवहार मुझे उलझन में डाल देता । वे कभी बड़े अच्छे से पेश आते हैं कभी जरा भी नहीं पूछते ।

सभा में सभी पक्षी सपरिवार आये थे। रात हो गयी थी। बच्चे और कुछ बड़े भी ऊँघने लगे थे । मोर ने जटायु और गरुण से आज्ञा लेकर सभा समाप्ती की घोषणा कर दी। कुछ पक्षियों के घोसले उसी पेड़ पर थे । शेष पक्षी अपने अपने घोंसलों या निवास स्थलों की ओर उड़ गये ।

13 Novembre 2020 06:48 0 Rapport Incorporer Suivre l’histoire
0
La fin

A propos de l’auteur

Commentez quelque chose

Publier!
Il n’y a aucun commentaire pour le moment. Soyez le premier à donner votre avis!
~