पहाड़ी जैसी मैं, शहरी जैसा तूं कहां खिलेंगे दो प्रणय पुष्प ? शांत हृदय में सुगंध लेकर मैं रहतीं हूं कुदरत के आशियानों में तूं रहता हैं कांक्रीट के दीवारों में , मैं पीतीं हूं झरनों का जल तूं पीता है मिनरल्स वोटर मैं चलतीं हूं शख्त पगडंडी पर तूं चलता मखमली रास्तों पर मैं जीतीं हूं परंपरागत संस्कृति से तूं जीता है वेस्टर्न कल्चर से न कुंडली, चौघड़िए के तालमेल न ठीक-ठाक ग्रह-नक्षत्र-योग , न शनि-राहु-केतु की कृपादृष्टि न किस्मत की लकीरों में अमीरी , बस वैभव जीवनशैली में फ़क़ीरी ©- शेखर खराड़ी
3 August 03, 2023, 08:33 0Podemos mantener a Inkspired gratis al mostrar publicidad a nuestras visitas. Por favor, apóyanos poniendo en “lista blanca” o desactivando tu AdBlocker (bloqueador de publicidad).
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